क्या किसी को याद आ रहा है साल 2008 में वारंगल में एसिड अटैक कांड के आरोपियों का भी पुलिस ने एनकाउंटर किया था। उस समय वारंगल में एसपी कौन था… हैदराबाद के पुलिस कमिश्नर वीसी सज्जनार। मतलब… बस यूं ही एक रिमाइंडर है।
इस बात को लेकर कई सवाल उठने वाले हैं कि क्या पुलिस ही सारे मामले सुलझाएगी… फिर अदालतों का क्या होगा ? या फिर आंख के बदले आंख, जान के बदले जान वाला कानून बनाना होगा, जहां सब कुछ पुलिस ही कर देगी।
ठांय ठांय करने में यकीन रखने वाली पुलिस का काम पहली नजर में सबको अच्छा लगेगा लेकिन एक सभ्य समाज के लिए यह बेहद खतरनाक भी है। इसकी बजाय न्याय व्यवस्था को और प्रभावी बनाया जा सकता है।
मत भूलिये कि इसी मामले में इसी पुलिस ने मृतका के परिजनों से किस तरह व्यवहार किया था, उन्हें क्या क्या नहीं कहा गया था…. एक और गुनाह से दूसरे गुनाहों को नहीं छिपाया जा सकता।
एक बात यह भी गौर करने लायक है कि तेलंगाना के कानून मंत्री इंद्रकरण रेड्डी ने क्या कहा? उन्होंने कहा है कि कानूनी प्रक्रिया से पहले ही भगवान ने उन्हें सजा दे दी… मतलब क्या पुलिस भगवान है?