भारत सरकार ने वक्फ संशोधन विधेयक, 2025 | Waqf (Amendment) Bill, 2025 लोकसभा में पेश किया है, जिसका उद्देश्य वक्फ बोर्डों के प्रशासन और प्रबंधन में सुधार करना है। हालाँकि, इस विधेयक को लेकर विपक्ष और कुछ मुस्लिम संगठनों ने आपत्तियाँ उठाई हैं। आइए, इसके प्रमुख बिंदुओं, पुराने और नए नियमों के अंतर और विवाद के कारणों को समझें।
वक्फ क्या है? : वक्फ इस्लामिक कानून के तहत एक धार्मिक दान है, जिसमें संपत्ति को अल्लाह के नाम पर स्थायी रूप से दान कर दिया जाता है। इस संपत्ति का उपयोग धार्मिक, शैक्षणिक या सामाजिक कल्याण के लिए किया जाता है। भारत में वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन वक्फ बोर्ड करते हैं, जो वक्फ अधिनियम, 1995 के तहत गठित होते हैं।
वक्फ संशोधन विधेयक, 2022 में प्रस्तावित प्रमुख बदलाव :
राष्ट्रीय वक्फ संपत्ति प्रबंधन एजेंसी (NAWPM): केंद्र सरकार एक नई एजेंसी बनाएगी, जो वक्फ संपत्तियों के विकास और प्रबंधन के लिए दिशा-निर्देश जारी करेगी।
केंद्रीय वक्फ परिषद (CWC) का अधिकार विस्तार: अब CWC को राज्य वक्फ बोर्डों के निर्णयों को चुनौती देने और उन पर निगरानी रखने का अधिकार मिलेगा।
पहले वक्फ संपत्ति को बेचने या लीज पर देने के लिए राज्य सरकार की अनुमति लेनी पड़ती थी। नए संशोधन में 30 साल तक की लीज की अनुमति दी गई है, ताकि संपत्ति का बेहतर उपयोग हो सके।
राज्य सरकारें अब वक्फ बोर्ड के सदस्यों की नियुक्ति करेंगी, लेकिन उन्हें केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित योग्यता मानदंडों का पालन करना होगा।
ड्रोन और जीआईएस मैपिंग का उपयोग करके वक्फ संपत्तियों का डिजिटल सर्वेक्षण किया जाएगा, ताकि अवैध कब्जे को रोका जा सके।
वक्फ ट्रिब्यूनल में सुधार : ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाया गया है।
पुराने और नए नियमों में अंतर
मुद्दा पुराना नियम (1995) नया प्रस्ताव (2022 संशोधन)
केंद्र की भूमिका सीमित निगरानी NAWPM और CWC को अधिक अधिकार
संपत्ति की लीज अनुमति लेनी पड़ती थी 30 साल तक की लीज की छूट
सदस्य नियुक्ति राज्य सरकार स्वतंत्र केंद्र द्वारा निर्धारित मानदंड
सर्वेक्षण पारंपरिक तरीके ड्रोन और जीआईएस मैपिंग
ट्रिब्यूनल कम पारदर्शी प्रक्रिया अधिक पारदर्शी नियुक्ति
विरोध के कारण
वक्फ संशोधन विधेयक | Waqf (Amendment) Bill, 2025 का विपक्ष और कुछ मुस्लिम संगठनों द्वारा विरोध किया जा रहा है। इसके प्रमुख कारण हैं:
विपक्ष का मानना है कि केंद्र सरकार द्वारा NAWPM और CWC को अधिकार देना, राज्य वक्फ बोर्डों की स्वायत्तता को कमजोर करता है।
कुछ मुस्लिम नेताओं का कहना है कि यह केंद्रीकरण की ओर एक कदम है, जो संविधान के अनुच्छेद 26 (धार्मिक संस्थाओं के प्रबंधन का अधिकार) के खिलाफ हो सकता है।
विपक्ष का आरोप है कि सरकार वक्फ संपत्तियों को निजी कंपनियों को लीज पर देकर उनका व्यावसायिक उपयोग करना चाहती है। कुछ लोगों को लगता है कि 30 साल की लीज की छूट से संपत्तियों पर सरकार या कॉरपोरेट घरानों का कब्जा हो सकता है।
कुछ राज्य सरकारें (जैसे पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु) मानती हैं कि यह संशोधन केंद्र का राज्य के अधिकारों में हस्तक्षेप है।
कुछ विपक्षी दलों का आरोप है कि यह संशोधन मुस्लिम वोट बैंक को निशाना बनाने की कोशिश है। हालाँकि, सरकार का दावा है कि यह सुधार वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन के लिए है।
क्या विपक्ष का डर जायज है?
हाँ, अगर देखा जाए तो : वक्फ बोर्डों का स्वायत्त चरित्र कमजोर हो सकता है। केंद्र के अधिकार बढ़ने से राज्यों की भूमिका कम होगी। अगर संपत्तियों का गलत उपयोग होता है, तो धार्मिक भावनाएँ आहत हो सकती हैं।
नहीं, अगर सरकार के तर्क को मानें तो: यह सुधार पारदर्शिता और बेहतर प्रबंधन के लिए है। वक्फ संपत्तियों का सही उपयोग होगा, जिससे मुस्लिम समुदाय को लाभ मिलेगा। अवैध कब्जे और भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी।
वक्फ संशोधन विधेयक का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को अधिक कुशल बनाना है, लेकिन इसे लेकर स्वायत्तता और राजनीतिक एजेंडे को लेकर आशंकाएँ भी हैं। सरकार को चाहिए कि वह मुस्लिम समुदाय और विपक्ष के साथ विश्वास बनाकर इस मुद्दे को हल करे, ताकि किसी की धार्मिक भावनाएँ आहत न हों।
यदि संशोधन का उद्देश्य सच में सुधार है, तो इसे सर्वसम्मति से लागू किया जाना चाहिए। लेकिन अगर इसमें राजनीतिक हित छिपे हैं, तो यह देश की धर्मनिरपेक्षता के लिए चुनौती बन सकता है।