अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में चल रहे प्रोपगैंडा पर अंकुश का कथित Censorship Tool बनता सहयोग पोर्टल

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सहयोग पोर्टल (Sahyog Portal) भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया एक डिजिटल मंच है, जिसका उद्देश्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के बीच समन्वय स्थापित करना है ताकि अवैध सामग्री, जैसे आतंकवादी प्रचार या राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पैदा करने वाली सामग्री, को तेजी से हटाया जा सके। यह इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत संचालित होता है और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act), 2000 की धारा 79(3)(b) के तहत काम करता है। सरकार का दावा है कि यह सेंसरशिप Censorship Tool का साधन नहीं, बल्कि डिजिटल स्पेस को सुरक्षित बनाने का एक सहयोगी तंत्र है।

एक्स कॉर्प का आरोप और उसकी वैधता

एक्स कॉर्प (जो पहले ट्विटर के नाम से जाना जाता था) ने आरोप लगाया है कि सहयोग पोर्टल का उपयोग सरकार द्वारा “सेंसरशिप टूल” के रूप में किया जा रहा है, जो IT एक्ट की धारा 69A के तहत निर्धारित प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों को दरकिनार करता है। एक्स का कहना है कि इस पोर्टल के जरिए सामग्री को ब्लॉक करने के आदेश बिना उचित प्रक्रिया, लिखित औचित्य, या स्वतंत्र समीक्षा के जारी किए जा रहे हैं, जो अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाता है।

हम यह मानते हुए विचार करते हैं कि पोर्टल के संचालन में पारदर्शिता और प्रक्रियात्मक अनुपालन की कमी का आरोप आंशिक रूप से सही हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट के श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2015) फैसले में भी धारा 66A को असंवैधानिक ठहराते हुए अभिव्यक्ति की आजादी पर अनुचित प्रतिबंधों की आलोचना की गई थी।

सरकार का तर्क है कि यह केवल एक तकनीकी सुविधा है जो मौजूदा कानूनी ढांचे के तहत काम करता है, लेकिन बिना ठोस सबूतों के यह कहना मुश्किल है कि यह पूरी तरह से सेंसरशिप का साधन है। यह मामला कर्नाटक हाई कोर्ट में विचाराधीन है, और अदालत का फैसला ही इसकी वैधता को स्पष्ट करेगा।

सरकार को प्रोपगैंडा पर नियंत्रण का अधिकार

केंद्र सरकार को संविधान और कानून के तहत प्रोपगैंडा या गलत सूचना पर लगाम कसने का अधिकार है, बशर्ते यह उचित और कानूनी प्रक्रिया का पालन करे।

संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत अभिव्यक्ति की आजादी मौलिक अधिकार है, लेकिन अनुच्छेद 19(2) इसे “सार्वजनिक व्यवस्था, decency, morality, राष्ट्रीय सुरक्षा, और अन्य आधारों” पर उचित प्रतिबंधों के अधीन करता है।

IT एक्ट की धारा 69A भी सरकार को ऐसी सामग्री को ब्लॉक करने की शक्ति देती है जो इन आधारों पर खतरा पैदा करती हो।

उदाहरण के लिए, 2021 में किसान आंदोलन के दौरान कुछ X अकाउंट्स को ब्लॉक करने के आदेश जारी किए गए थे, जिसे सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जरूरी बताया था। हालांकि, यदि यह कार्रवाई अस्पष्ट या राजनीतिक विरोध को दबाने के लिए हो, तो यह संविधान के खिलाफ हो सकता है।

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सोशल मीडिया का दुरुपयोग

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का गलत सूचनाएं फैलाने के लिए व्यापक रूप से दुरुपयोग हो रहा है। 2018 में वाट्सएप पर अफवाहों से जुड़ी मॉब लिंचिंग की घटनाएं और 2024 के चुनावों में डीपफेक के उपयोग के उदाहरण हैं। दिल्ली हाई कोर्ट ने नवंबर 2024 में कहा था कि आतंकवादी और प्रतिबंधित संगठन सोशल मीडिया का दुरुपयोग हिंसा भड़काने के लिए करते हैं। यह एक वास्तविक समस्या है, और सरकार इसे नियंत्रित करने के लिए कदम उठा सकती है, लेकिन इसका समाधान व्यापक सेंसरशिप (Censorship Tool) नहीं, बल्कि लक्षित कार्रवाई और प्लेटफॉर्मों की जवाबदेही तय करना है।

सोशल मीडिया कंपनियों की जिम्मेदारियां

सोशल मीडिया कंपनियों की भी जिम्मेदारियां हैं और वे अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर मनमानी नहीं कर सकतीं। IT एक्ट की धारा 79 के तहत, उन्हें “सुरक्षित रहने” की छूट तभी मिलती है, जब वे अवैध सामग्री के बारे में सूचना मिलने पर तुरंत कार्रवाई करें। 2021 के IT नियमों (Intermediary Guidelines) ने भी उनकी जवाबदेही बढ़ाई है, जैसे कि शिकायत निवारण अधिकारी नियुक्त करना और मासिक अनुपालन रिपोर्ट देना। उदाहरण के लिए, वे फर्जी खबरों और बदली हुई छवियों को 24 घंटे के भीतर हटाने के लिए बाध्य हैं। यह सुनिश्चित करता है कि वे कानून का पालन करें और उपयोगकर्ताओं की गोपनीयता और सुरक्षा की रक्षा करें।

निष्पक्ष समीक्षा और कानूनी संदर्भ

इस मामले में दो मुख्य पक्ष हैं: सरकार का दावा कि सहयोग पोर्टल (Sahyog Portal) डिजिटल सुरक्षा के लिए है, और एक्स का आरोप कि यह सेंसरशिप का हथियार (Censorship Tool) है। दोनों के तर्कों में सच्चाई हो सकती है, लेकिन यह विवाद कानूनी और नैतिक संतुलन पर टिका है। कानूनी संदर्भ में, IT एक्ट की धारा 69A सामग्री ब्लॉक करने की शक्ति देती है, लेकिन प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के साथ, जबकि धारा 79(3)(b) मध्यस्थों को नोटिस पर कार्रवाई करने के लिए कहती है। संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत सरकार को गलत सूचना पर कार्रवाई का अधिकार है, लेकिन यह पारदर्शी और न्यायसंगत होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के श्रेया सिंघल फैसले ने अभिव्यक्ति की आजादी पर अनुचित प्रतिबंधों को असंवैधानिक ठहराया है, जो इस मामले में प्रासंगिक है।

अंत में, यह मामला अभी अदालत में है और अंतिम निर्णय ही इसकी सच्चाई को उजागर करेगा। सरकार को अपनी शक्तियों का दुरुपयोग न करने और सोशल मीडिया कंपनियों को अपनी जिम्मेदारियां निभाने की जरूरत है, ताकि डिजिटल स्पेस सुरक्षित और स्वतंत्र दोनों रहे।