संसदीय सीटों के परिसीमन को लेकर उठा बवाल, दक्षिण की प्रतिनिधित्‍व खोने की आशंकाएं और केंद्र सरकार के तर्क

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भारत में परिसीमन (Delimitation) का मसला संविधानिक प्रक्रिया से जुड़ा हुआ है, जिसमें लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण किया जाता है। यह प्रक्रिया जनसंख्या के आधार पर होती है और इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या लगभग समान हो। परिसीमन का काम एक स्वतंत्र निकाय, परिसीमन आयोग (Delimitation Commission), द्वारा किया जाता है।

परिसीमन का इतिहास और प्रक्रिया

संविधानिक प्रावधान: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 82 और 170 के तहत, हर 10 साल में जनगणना के आधार पर परिसीमन की प्रक्रिया होनी चाहिए। हालांकि, 1976 में 42वें संविधान संशोधन के बाद, इसे 2001 तक के लिए स्थगित कर दिया गया था। बाद में 2002 में 84वें संविधान संशोधन के तहत, इसे 2026 तक के लिए फिर से स्थगित कर दिया गया।

परिसीमन आयोग: परिसीमन आयोग का गठन राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। यह आयोग जनसंख्या, भूगोल, प्रशासनिक सुविधा और अन्य कारकों को ध्यान में रखते हुए निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का निर्धारण करता है।

अंतिम परिसीमन: अंतिम परिसीमन 2002-2008 के दौरान हुआ था, जिसमें 1971 की जनगणना के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण किया गया था। 2026 तक जनसंख्या के आधार पर परिसीमन नहीं किया जाएगा।

दक्षिण भारत में परिसीमन को लेकर विरोध :

दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में परिसीमन को लेकर विरोध की आवाज़ उठती रही है। इसके पीछे कई कारण हैं। आइए इन्‍हें देखें

जनसंख्या नियंत्रण का प्रभाव: दक्षिण भारत के राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण में अधिक सफलता प्राप्त की है। उदाहरण के लिए, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक में जनसंख्या वृद्धि दर उत्तर भारत के राज्यों की तुलना में कम है। यदि परिसीमन जनसंख्या के आधार पर किया जाता है, तो दक्षिण भारत के राज्यों को लोकसभा और विधानसभा में कम सीटें मिल सकती हैं, जबकि उत्तर भारत के राज्यों को अधिक सीटें मिल सकती हैं। इससे दक्षिण भारत की राजनीतिक प्रतिनिधित्व कम हो सकता है।

राजनीतिक असंतुलन: दक्षिण भारत के राज्यों का मानना है कि परिसीमन के बाद उनकी राजनीतिक ताकत कम हो जाएगी और उत्तर भारत के राज्यों का प्रभुत्व बढ़ जाएगा। इससे संघीय ढांचे में असंतुलन पैदा हो सकता है।

आर्थिक योगदान: दक्षिण भारत के राज्यों का दावा है कि वे देश के आर्थिक विकास में अधिक योगदान देते हैं और उन्हें उचित प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। यदि परिसीमन के बाद उनकी सीटें कम हो जाती हैं, तो यह अन्यायपूर्ण होगा।

क्या दक्षिण भारत का विरोध सही है?

दक्षिण भारत के लोगों का विरोध कुछ हद तक तर्कसंगत लगता है क्योंकि दक्षिण भारत के राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण में सफलता प्राप्त की है। यदि उन्हें इसके लिए “दंड” के रूप में कम सीटें मिलती हैं, तो यह अन्य राज्यों के लिए गलत संदेश भेज सकता है।

भारत एक संघीय देश है, और सभी राज्यों को उचित प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। यदि परिसीमन के बाद कुछ राज्यों का प्रतिनिधित्व कम हो जाता है, तो यह संघीय ढांचे के लिए हानिकारक हो सकता है।

दक्षिण भारत के राज्यों ने शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक विकास में उल्लेखनीय प्रगति की है। उन्हें उनके योगदान के अनुरूप प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।

हालांकि, यह भी ध्यान रखना चाहिए कि परिसीमन का उद्देश्य लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व को न्यायसंगत बनाना है। यदि जनसंख्या के आधार पर परिसीमन नहीं किया जाता है, तो कुछ क्षेत्रों में अधिक जनसंख्या वाले निर्वाचन क्षेत्रों को कम प्रतिनिधित्व मिल सकता है, जो लोकतंत्र के सिद्धांतों के विपरीत है।

दूसरी ओर, केंद्र सरकार का परिसीमन (Delimitation) के मुद्दे पर मत स्पष्ट है। वह संविधानिक प्रावधानों और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के अनुसार परिसीमन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के पक्ष में है। हालांकि, दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में इस प्रक्रिया को लेकर विरोध के बाद, केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर संवेदनशीलता दिखाई है और कुछ स्पष्टीकरण दिए हैं। सरकार का मानना है कि परिसीमन एक न्यायसंगत और पारदर्शी प्रक्रिया है, जो देश के सभी हिस्सों के लिए समान रूप से लागू होती है।

केंद्र सरकार का कहना है कि परिसीमन संविधान के अनुच्छेद 82 और 170 के तहत एक आवश्यक प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया जनसंख्या के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण करती है, ताकि प्रत्येक नागरिक का वोट समान मूल्य रखे। सरकार का मानना है कि यह लोकतंत्र की मूल भावना के अनुरूप है।

सरकार का तर्क है कि परिसीमन का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या लगभग समान हो। यदि कुछ क्षेत्रों में जनसंख्या अधिक है और उन्हें समान प्रतिनिधित्व नहीं मिलता है, तो यह लोकतांत्रिक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत होगा।

केंद्र सरकार का कहना है कि परिसीमन आयोग जनसंख्या के साथ-साथ भूगोल, प्रशासनिक सुविधा और अन्य कारकों को भी ध्यान में रखता है। इसलिए, यह प्रक्रिया पूरी तरह से न्यायसंगत और संतुलित है।

सरकार ने 2002 में 84वें संविधान संशोधन के माध्यम से परिसीमन को 2026 तक के लिए स्थगित कर दिया है। इसका मतलब है कि अगले कुछ वर्षों तक परिसीमन की प्रक्रिया शुरू नहीं होगी। इससे राज्यों को और समय मिल गया है।

दक्षिण भारत के विरोध को कैसे गलत ठहराया जा रहा है:

केंद्र सरकार का कहना है कि दक्षिण भारत के राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है, और इसे पहचाना जाना चाहिए। हालांकि, सरकार यह भी कहती है कि परिसीमन का उद्देश्य जनसंख्या के आधार पर न्यायसंगत प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना है, न कि किसी राज्य को दंडित करना।

सरकार का दावा है कि परिसीमन की प्रक्रिया संघीय ढांचे को कमजोर नहीं करती है। बल्कि, यह सुनिश्चित करती है कि सभी राज्यों को उनकी जनसंख्या के अनुसार उचित प्रतिनिधित्व मिले।

केंद्र सरकार का कहना है कि परिसीमन आयोग एक स्वतंत्र निकाय है, जो पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से काम करता है। आयोग जनसंख्या, भूगोल और प्रशासनिक सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेता है।

सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि परिसीमन की प्रक्रिया में राज्यों के साथ परामर्श किया जाता है। इसलिए, दक्षिण भारत के राज्यों की चिंताओं को ध्यान में रखा जाएगा।

प्रो रेटा बेस पर परिसीमन क्या है?

इसके अलावा केंद्र सरकार ने परिसीमन (Delimitation) के मुद्दे को प्रो रेटा बेस (Pro Rata Basis) पर करने की बात कही है, जो एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील प्रस्ताव है। यह प्रस्ताव दक्षिण भारत के राज्यों की चिंताओं को कम करने के लिए है, क्योंकि वे जनसंख्या आधारित परिसीमन के खिलाफ हैं। लेकिन यह प्रस्ताव कैसे काम करेगा और दक्षिण भारत के राज्यों की सीटें क्यों कम होने की आशंका है, इसे समझने के लिए हमें इसकी गहराई में जाना होगा।

प्रो रेटा बेस का मतलब है कि परिसीमन की प्रक्रिया में जनसंख्या के साथ-साथ अन्य कारकों को भी ध्यान में रखा जाएगा। इसमें निम्नलिखित बातें शामिल हो सकती हैं:

केंद्र सरकार का प्रस्ताव है कि राज्यों को मिलने वाली लोकसभा सीटों की संख्या में बड़ा बदलाव नहीं किया जाएगा। यानी, अगर किसी राज्य को अभी 25 सीटें मिलती हैं, तो परिसीमन के बाद भी उसे लगभग इतनी ही सीटें मिलेंगी।

जिन राज्यों में जनसंख्या वृद्धि दर कम है (जैसे दक्षिण भारत के राज्य), उन्हें उनके प्रयासों के लिए “पुरस्कृत” किया जाएगा। इसका मतलब है कि उनकी सीटें कम नहीं होंगी। इसके साथ ही भूगोल, प्रशासनिक सुविधा, और सामाजिक-आर्थिक स्थिति जैसे कारकों को भी ध्यान में रखा जाएगा।

दक्षिण भारत के राज्यों की चिंता क्यों है?

दक्षिण भारत के राज्यों (जैसे तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, और आंध्र प्रदेश) का मानना है कि यदि परिसीमन जनसंख्या के आधार पर किया जाता है, तो उनकी सीटें कम हो जाएंगी। इसके पीछे निम्नलिखित कारण हैं:

दक्षिण भारत के राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण में सफलता प्राप्त की है। उदाहरण के लिए, तमिलनाडु और केरल में जनसंख्या वृद्धि दर उत्तर भारत के राज्यों (जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार) की तुलना में काफी कम है। यदि परिसीमन जनसंख्या के आधार पर होता है, तो उत्तर भारत के राज्यों को अधिक सीटें मिलेंगी, जबकि दक्षिण भारत के राज्यों की सीटें कम हो जाएंगी। दक्षिणी राज्यों को डर है कि उनकी सीटें कम होने से उनका राजनीतिक प्रभाव कम हो जाएगा और उत्तर भारत के राज्यों का प्रभुत्व बढ़ जाएगा। दक्षिण भारत के राज्यों का दावा है कि वे देश के आर्थिक विकास में अधिक योगदान देते हैं, और उन्हें उचित प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।

केंद्र सरकार का दावा: सीटें नहीं घटेंगी

केंद्र सरकार का कहना है कि प्रो रेटा बेस पर परिसीमन करने से दक्षिण भारत के राज्यों की सीटें नहीं घटेंगी। सरकार का प्रस्ताव है कि राज्यों को मिलने वाली लोकसभा सीटों की संख्या में बड़ा बदलाव नहीं किया जाएगा। यानी, अगर किसी राज्य को अभी 25 सीटें मिलती हैं, तो परिसीमन के बाद भी उसे लगभग इतनी ही सीटें मिलेंगी। सरकार का दावा है कि परिसीमन की प्रक्रिया संघीय ढांचे को कमजोर नहीं करेगी, बल्कि इसे मजबूत करेगी।

परिसीमन होगा कैसे?

यदि परिसीमन प्रो रेटा बेस पर किया जाता है, तो यह निम्नलिखित तरीके से हो सकता है:

वर्तमान सीटों का अनुपात बनाए रखना: राज्यों को मिलने वाली लोकसभा सीटों की संख्या में बड़ा बदलाव नहीं किया जाएगा। यानी, अगर किसी राज्य को अभी 25 सीटें मिलती हैं, तो परिसीमन के बाद भी उसे लगभग इतनी ही सीटें मिलेंगी।

निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण: परिसीमन आयोग जनसंख्या, भूगोल, और प्रशासनिक सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण करेगा। इससे यह सुनिश्चित होगा कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या लगभग समान हो।

राज्यों के साथ परामर्श: परिसीमन की प्रक्रिया में राज्यों के साथ परामर्श किया जाएगा, ताकि उनकी चिंताओं को ध्यान में रखा जा सके।